बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
उत्तर-
व्यक्तित्व विकास
(Personality Development)
व्यक्तित्व विकास केवल शरीर रचना और शारीरिक गठन ही नहीं है बल्कि इसमें व्यक्ति के समस्त शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक गुणों के विकास का योग है। यह व्यक्ति की आदतों, रुचियों, मनोवृत्तियों, आकांक्षाओं, इच्छाओं, विचारों, भावों, बौद्धिक क्षमताओं, चारित्रिक गुणों, व्यावहारिक शैलियों, सामाजिक मूल्यों और संवेगात्मक गुणों का एक अभूतपूर्व संघठन | अतः इन सभी गुणों का प्रभाव ही बच्चे के अच्छे या बुरे प्रभावशाली व्यक्तित्व का निर्माण करता है। जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती जाती है वैसे-वैसे बच्चे के व्यक्तित्व का विकास भी होता जाता है।
व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी भाषा के पर्सनेल्टी (Personality) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। यह शब्द लैटिन भाषा के 'परसोना' शब्द से विकसित हुआ है। परसोना का अर्थ है मुखौटा या नकली चेहरा जिसका प्रयोग नाटक के पात्र अपना रूप बदलने के लिये करते हैं। अतः प्रारम्भ में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति की शारीरिक रचना, वेश और रंग-रूप से लगाया जाता था और जो व्यक्ति अपने वाह्य गुणों द्वारा दूसरे व्यक्तियों पर जितना अधिक प्रभावित कर लेता था उसका व्यक्तित्व उतना ही अच्छा और प्रभावशाली माना जाता था परन्तु वर्तमान समय में व्यक्तित्व का मूल्यांकन व्यक्ति के समस्त आँतरिक और वाह्य गुणों के आधार पर किया जाता है।
व्यक्तित्व विकास व्यक्ति में एक अति महत्वपूर्ण पहलू है। व्यक्तित्व ही एक ऐसा गुण है जिसके कारण व्यक्ति वाह्य रूप से अनेक विशेषताओं में समान होने पर भी भिन्न दिखाई देता है। इस भिन्नता का प्रमुख कारण यही है कि प्रत्येक प्राणी के भीतर एक अलग ही व्यक्तित्व विकसित होता है।
व्यक्तित्व की परिभाषा - विभिन्न विद्वानों ने व्यक्तित्व को निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया है
1. वैलन्टीन के अनुसार - "व्यक्तित्व जन्मजात और अर्जित प्रवृत्ति का योग है। "
2. क्यूरहेड के अनुसार - "व्यक्तित्व में सम्पूर्ण व्यक्ति समाहित रहता है। व्यक्तित्व व्यक्ति के शारीरिक गठन, रुचि के प्रकारों, अभिवृत्तियों, व्यवहार, क्षमताओं, योग्यताओं और प्रवीणताओं का अद्भुत संगठन है।"
3. आलपोर्ट के अनुसार - "व्यक्तित्व व्यक्ति के मनोदैहिक गुणों का वह गत्यांत्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसका अभूतपूर्व समायोजन निर्धारित करती है।'
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि व्यक्तित्व का विकास एक जटिल प्रक्रिया है जो जन्म पूर्व से प्रारम्भ होकर परिपक्वता तक चलता रहता है।
बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक - बच्चे के व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
I. आनुवंशिकता सम्बन्धी कारक, II. वातावरण सम्बन्धी कारक।
I. आनुवंशिकता सम्बन्धी कारक
(Hereditary Factors)
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले आनुवंशिकता सम्बन्धी कारक निम्नलिखित हैं--
1. अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands)- ये ग्रन्थियाँ व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती हैं क्योंकि इनसे निकलने वाले हारमोन्स क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। इनसे अत्याधिक स्राव होने पर बालक अशान्त, अक्रियाशील, मानसिक रूप से दुर्बल हो जाता है। बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाली अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ निम्नलिखित हैं
(i) थायराइड ग्रन्थि (Thyroid Gland) - यह ग्रन्थि श्वांसनली के दोनों ओर स्थित होती है। इस ग्रन्थि से थायरॉक्सिन नामक हारमोन्स का स्रावण होता है। इस ग्रन्थि का स्राव शारीरिक और मानसिक विकास के लिये परम आवश्यक है। थायरॉक्सिन के कम स्रावण से शारीरिक विकास रुक जाता है और व्यक्ति बौना रह जाता है। हाथ-पैर छोटे, होंठ और जीभ मोटी तथा पेट शरीर की तुलना में बड़ा होता है। ध्यान, स्मरण, चिन्तन की क्षमता अपनी आयु से कम होती है। अतः थायराइड ग्रन्थि बालक के सामान्य शारीरिक एवं मानसिक विकास में सहायता प्रदान कर व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करती है।
(ii) पैराथायराइड ग्रन्थि (Parathyroid Gland) – यह थायराइड ग्रन्थि के ऊपर मटर के आकार की ग्रन्थि है। इससे निकलने वाले स्राव बालके के दाँतों, हड्डियों के विकास को प्रभावित करते हैं। इसमें अनियमितता आने पर मांसपेशियों में ऐंठन होती है, संवेगात्मक विकास प्रभावित होता है जबकि सामान्य रूप में होने पर बालक शान्त एवं स्थित प्रकृति का होता है।
(iii) अग्नाशय ग्रन्थि (Pancreas Gland) - यह ग्रन्थि पम्वाशय के घुमाव में स्थित होती है। इस ग्रन्थि से इन्सुलिन नामक हारमोन का स्रावण होता है जोकि रक्त शर्करा को नियंत्रित करती है। रक्त में इन्सुलिन की कमी होने से व्यक्ति मधुमेह का शिकार हो जाता है।
(iv) पिट्यूटरी ग्रन्थि (Pituitary Gland) - यह ग्रन्थि मस्तिष्क के निचले भाग में स्थित होती है। विकास काल में यह ग्रन्थि अधिक क्रियाशील हो जाती है तो व्यक्ति के हाथ, पैर, नाक, कान, जबड़ा सामान्य से अधिक लम्बे हो जाते हैं। कम क्रियाशील होने पर बालक की लम्बाई कम रह जाती है।
(v) एड्रीनल ग्रन्थि (Adrenal Gland)—यह दोनों गुर्दा के ऊपर स्थित होती हैं। इस ग्रन्थि के हारमोन व्यक्तित्व के विकास को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। इस ग्रन्थि के दो भाग होते हैं - (i) आन्तरिक भाग, (ii) वाह्य भाग। अगर इस ग्रन्थि का वाह्य भाग आवश्यकता से कम सक्रिय रहता है तो व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, उदासी एवं निष्क्रियता के लक्षण दिखाई देते हैं। इस ग्रन्थि का आन्तरिक भाग कम सक्रिय होने पर बालक अपनी परिस्थितियों में सामंजस्य नहीं कर पाता है उसमें संवेगात्मक तनाव, रक्त प्रवाह की गति का बढ़ना, हृदय की धड़कन का बढ़ना तथा चिड़चिड़ापन आ जाता है।
(vi) जनन ग्रन्थि ( Ganad Gland) स्त्रियों में अण्डाशय तथा पुरुषों में वृषण जनन ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। इन ग्रन्थियों के स्राव से बालक में पुरुषत्व और बालिका में स्त्रियों के गुण का विकास होता है। यदि इन ग्रन्थियों से स्रावण कम होता है तो जनन अंगों का ठीक से विकास नहीं हो पाता है। 11-13 वर्ष में ये ग्रन्थियाँ क्रियाशील हो जाती हैं।
2. स्नायु मंडल (Nervous System) बालक का स्नायुमंडल जितना अधिक स्वस्थ और सुविकसित होगा उसका व्यक्तित्व भी उतना ही अच्छा होता है क्योंकि स्नायुमंडल ही व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं को प्रभावित करता है। इसी कारण वह अपनी बुद्धि से स्वयं को प्रत्येक स्थान में प्रत्येक वातावरण में भलीभांति समायोजित कर लेता है।
3. बुद्धि (Intelligence) - सामान्य बुद्धि वाले बालक स्वयं को प्रत्येक स्थान में सरलतापूर्वक समायोजित कर लेते हैं जबकि मन्द बुद्धि बालक खेलकूद, पढ़ाई-लिखाई तथा सामाजिक सम्पर्क आदि में पिछड़े होने के कारण उपेक्षा की दृष्टि से देखे जाते हैं जिससे वे हीनभावना के शिकार हो जाते हैं। अत्यधिक तीव्र बुद्धि वाले बच्चों में अहम्, श्रेष्ठता तथा उच्चता की भावना विद्यमान होने के कारण वे स्वयं को अन्य बच्चों से अलग कर लेते हैं। बालक के मानसिक गुण और समायोजन की क्षमता उसके व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करती है।
4. शरीर रचना और स्वास्थ्य (Physique and Health) - शारीरिक रचना व्यक्तित्व निर्धारण का प्रमुख तत्व है। व्यक्तित्व की वाह्य सुन्दरता व्यक्ति की लम्बाई, चौड़ाई, शारीरिक गठन तथा शारीरिक अंगों की बनावट पर निर्भर करती है। जिस व्यक्ति की शारीरिक रचना सुन्दर होती है उसमें स्वतः ही आत्मविश्वास आ जाता है और उसके व्यक्तित्व को अधिक प्रभावी बना देता है। इसके विपरीत जिनकी शारीरिक बनावट अच्छी नहीं होती है उनमें हीनता की भावना उत्पन्न हो जाती है जो उनके आत्मविश्वास को कम करती है और शारीरिक समायोजन में बाधा उत्पन्न करती है। समायोजन दूषित होने से व्यक्तित्व कुंठित हो जाता है।
स्वास्थ्य भी व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करता है। एक स्वस्थ बालक के सभी विकास आयु के अनुसार होते हैं। अतः उनमें व्यक्तित्व के शील गुणों का विकास उचित मात्रा में होता है। स्वस्थ बालकों का समायोजन भी उत्तम होता है। इसके विपरीत अस्वस्थ बालकों में संवेगात्मक अस्थिरता पायी जाती है। आत्मविश्वास का अभाव रहता है और व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करता है।
II. वातावरण सम्बन्धी कारक
(Environmental Factor)
प्रत्येक बालक को जन्म के बाद अनेक प्रकार का वातावरण मिलता है जो भिन्न-भिन्न रूपों में उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। वातावरणीय कारक निम्नलिखित हैं
1. भौतिक वातावरण भौतिक एवं प्राकृतिक वातावरण से तात्पर्य जलवायु से है। जहाँ की जलवायु ठण्डी होती है वहाँ के व्यक्ति स्वस्थ, सुन्दर और अधिक परिश्रमी होते हैं। इसके विपरीत गर्म जलवायु के लोग अस्वस्थ और कम क्रियाशील होते हैं। अतः भौतिक वातावरण बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है।
2. परिवार में माता-पिता का स्वभाव एवं आपसी सम्बन्ध - बच्चे पर उसके माता-पिता का स्वभाव तथा आपसी सम्बन्ध का बहुत प्रभाव पड़ता है। जिस परिवार के माता-पिता के सम्बन्ध मधुर होते हैं वहाँ बच्चों की सभी आवश्यकताएँ पूरी होती हैं, उनकी समस्याओं का समाधान होता है तथा बालक को महत्व एवं प्रशंसा मिलती है उन बच्चों का व्यक्तित्व विकसित होता है जिन बच्चों को परिवार में उपेक्षा मिलती है वहाँ उनका व्यक्तित्व दब जाता है।
3. पारिवारिक सम्बन्ध - जिस परिवार में सदस्यों में आपसी सम्बन्ध मधुर और सौहार्दपूर्ण होते हैं जिसके सदस्य मृदुभाषी, मेहनती और ईमानदार होते हैं, वहाँ के बच्चों को परिवार के सदस्यों में नैतिक और सामाजिक गुण सीखने में मदद मिलती है जिससे उनका व्यक्तित्व अच्छी तरह विकसित होता है।
4. परिवार का आकार - अत्यधिक बड़े और छोटे दोनों ही परिवार बच्चे के व्यक्तित्व विकास में ऋणात्मक भूमिका अदा करते हैं। जहाँ एक ही बच्चा होता है वह अत्याधिक लाड़-प्यार के कारण जिद्दी हो जाता है जिससे उसका व्यक्तित्व प्रभावित होता है। अत्याधिक बड़े परिवार के बच्चे की सभी आवश्यकताएँ भली-भांति पूरी न होने से कालान्तर में उसका व्यक्तित्व विघटित होने लगता है।
5. जन्म क्रम - परिवार में बच्चों का जन्म क्रम भी उनके व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। प्रथम बच्चे में असुरक्षा, आश्रितता, संवेदनशीलता, आक्रामकता, अनिश्चितता तथा अभिप्रेरण आदि गुण होते हैं जबकि बीच के बच्चों में स्वतन्त्रता, साहस, आक्रामकता, विनोद, वहिर्मुखी तथा विश्वसनीयता और अन्तिम बच्चे में आत्मविश्वास, सुरक्षा, उदारता, ईर्ष्या, व्यग्रता तथा अनुत्तरदायित्व के गुण विद्यमान होते हैं।
6. परिवार का सामाजिक एवं आर्थिक स्तर- निम्न आर्थिक स्तर होने से परिवार के बच्चों में असुरक्षा की भावना विकसित होती है। उनकी भोजन, वस्त्र तथा शिक्षा आदि का आवश्यकताएँ पूरी नहीं होती है। तनावपूर्ण वातावरण में रहने से शारीरिक, मानसिक विकास प्रभावित होता है जिससे बच्चों का व्यक्तित्व भी विकसित नहीं हो पाता है।
7. पास-पड़ोस - पास-पड़ोस और साथी समूह का भी व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि बच्चा जिसके साथ उठता बैठता, खेलता-कूदता है उन्हीं की आदतें और कौशल सीख लेता है।
8. स्कूल - स्कूल भी बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। वह स्कूल में अलग-अलग वातावरण से आये बच्चों से मिलता है, उनकी आदतों विचारों को सीखता है। कक्षा में वातावरण, शिक्षक के व्यवहार और दैहिक उपलब्धियों आदि का भी उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
9. विशिष्ट जाति वर्ग में जन्म - यह कारक भी बालक के व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। निम्न और अस्पृश्य जातियों तथा निर्धन वर्गों के बच्चों में प्रारम्भ से ही हीनभावना विद्यमान होने से उनके व्यक्तित्व के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
10. सांस्कृतिक वातावरण - सामाजिक रीतियाँ, प्रथा, परम्पराएँ, संस्थाएँ तथा विश्वास आदि भी व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं। बच्चा जिस संस्कृति में पलता है उसकी मान्यताएँ भी उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं।
इस प्रकार बालक का सम्पूर्ण व्यक्तित्व सांस्कृतिक ढाँचे में ढलकर एक विशेष रूप ग्रहण करता है। संस्कृति व्यक्ति की भाषा, आचार, विचार, नैतिकता, चिन्तन तथा व्यक्ति के सभी शील गुणों का निर्धारण करती है और व्यक्तित्व को प्रभावित करती है।
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- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
- प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
- प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
- प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
- प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
- प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
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- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
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- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
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- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
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